ईश्वर ही सच्चा दाता है – एक भावुक कहानी

दोस्तों, ज़िंदगी में कई बार हम ये सोच बैठते हैं कि सब कुछ हमारी मेहनत का नतीजा है, जो कुछ भी हमें मिला है, वो हमने कमाया है। लेकिन क्या वाकई ऐसा है? क्या हमें सब कुछ हमारी ताक़त से ही मिला है? आज की ये कहानी आपको सोचने पर मजबूर कर देगी – कि इस संसार में असली दाता कौन है।

बहुत समय पहले की बात है। प्रतापगढ़ राज्य में वीरभद्र नाम का एक प्रतापी राजा राज करता था। राजा वीरभद्र बहुत ही धर्मात्मा और दयालु थे। रोज़ सुबह उठकर वो मंदिर जाते, भगवान की पूजा करते और फिर अपने दरबार में गरीबों और जरूरतमंदों को अन्न और धन दान करते।

उनके महल के बाहर हर सुबह गरीबों और भिखारियों की लंबी कतार लग जाती थी। राजा किसी को खाली हाथ नहीं लौटाते। सबको भरपेट भोजन और ज़रूरत का सामान देते। दो भिखारी रोज़ वहाँ आते – किशन और गोपाल। दोनों को रोज़ दान मिलता था, लेकिन दोनों की सोच में बड़ा फर्क था।

जब किशन को दान मिलता, वो राजा की तारीफ़ों के पुल बाँध देता। “राजन, तू ही मेरा अन्नदाता है! तेरे कारण ही मेरा पेट भरता है।” राजा यह सुनकर बहुत प्रसन्न होता। मगर जब गोपाल को दान मिलता, वो ऊपर आसमान की ओर हाथ उठाकर कहता, “हे ईश्वर, तेरा लाख-लाख शुक्र है! तू ही मेरा पालनहार है।”

राजा को गोपाल की ये बातें चुभने लगीं। वो सोचता – “हर रोज़ मैं अन्न देता हूँ, लेकिन यह भिखारी धन्यवाद भगवान को करता है?” मगर गोपाल की सच्चाई भरी बातों का उत्तर राजा के पास नहीं था।

कुछ दिनों बाद राजकुमारी फूल कुमारी का जन्मदिन आया। राजा ने पूरे राज्य में बड़ी धूमधाम से दान देने का आयोजन किया। जब किशन आया, तो हमेशा की तरह राजा ने उसे भरपूर दान दिया। किशन खुश होकर फिर से राजा की तारीफ़ करने लगा। राजा खुश हो गया।

फिर गोपाल की बारी आई। राजा ने उसे भी उतना ही दान दिया। गोपाल ने फिर ऊपर देखकर कहा, “हे ईश्वर, तू ही मेरा अन्नदाता है, तेरा धन्यवाद।” इस बार राजा का गुस्सा फूट पड़ा। वह बोला, “हर रोज़ मैं तुझे देता हूँ, फिर भी तू मेरा धन्यवाद नहीं करता?”

गोपाल मुस्कराकर बोला, “महाराज, देने वाला तो बस ईश्वर है। वह चाहे तो आपको ज़रिया बनाए, चाहे किसी और को। सब उसी की मर्जी से होता है।” कहकर गोपाल चला गया। राजा को यह बात बहुत चुभी।

राजा ने गोपाल को सबक सिखाने की ठानी। अगले दिन जब भिखारी इकट्ठा हुए, राजा ने किशन को अलग बुलाया और कहा, “आज तुम महल के किनारे वाले सुंदर रास्ते से जाओ।” वह रास्ता बहुत शांत था और राजा ने वहाँ एक घड़ा रखवाया था जो चांदी के सिक्कों से भरा हुआ था।

किशन उस नए रास्ते से बड़ा खुश था। सोच रहा था कि राजा ने आज उसे खास सम्मान दिया है। वह अपनी धुन में गुनगुनाता हुआ चल रहा था और रास्ते की सुंदरता में इतना खो गया कि आंखें बंद कर लीं। इसी कारण वह उस घड़े को देख ही नहीं पाया और खाली हाथ घर चला गया।

फिर राजा ने गोपाल को भी उसी रास्ते से भेजा। गोपाल हमेशा की तरह भगवान को याद करता हुआ चल रहा था। उसकी नजर जल्दी ही उस चांदी के सिक्कों से भरे घड़े पर पड़ी। उसने घड़ा उठाया, और खुशी से झूमते हुए कहा, “हे ईश्वर, तू सच में दयालु है। आज तूने मुझे इतना धन दिया, ये सब तेरी कृपा है!”

अगले दिन राजा ने किशन से पूछा, “किशन, राजमहल वाला रास्ता कैसा लगा?” किशन बोला, “महाराज, रास्ता तो सुंदर था। मैं तो आंखें बंद कर गुनगुनाता हुआ घर चला गया।” राजा ने फिर गोपाल से पूछा। गोपाल ने हाथ उठाकर जवाब दिया, “महाराज, ईश्वर की कृपा से वहाँ एक घड़ा मिला, जो चांदी के सिक्कों से भरा था।”

राजा दंग रह गया। उसने एक और योजना बनाई। इस बार उसने किशन को एक बड़ा सा तरबूज दिया और कहा, “ये मेरा विशेष दान है।” किशन वह तरबूज लेकर खुश होता हुआ चला गया। उधर गोपाल को कुछ पैसे दिए, और वो अपने घर की ओर चल पड़ा।

रास्ते में गोपाल को एक फलवाली दिखी, उसके पास वही तरबूज था जो राजा ने किशन को दिया था। गोपाल को देखकर तरबूज खाने का मन किया। उसने अपने पैसे देकर तरबूज खरीद लिया।

जब घर जाकर गोपाल ने तरबूज काटा, तो उसकी आंखें फटी रह गईं – अंदर से तरबूज सोने के सिक्कों से भरा हुआ था। गोपाल खुशी से झूमने लगा और कहा, “हे ईश्वर, तेरा धन्यवाद! तूने फिर मेरी झोली भर दी। तू ही सच्चा दाता है!”

अगले दिन जब राजा ने दरबार लगाया, तो उसकी नजर किशन पर पड़ी। मगर गोपाल नहीं आया था। राजा ने पूछा, “गोपाल कहाँ है?” किशन ने जवाब दिया, “महाराज, अब उसे भीख की जरूरत नहीं रही। उसे सोने के सिक्कों वाला तरबूज मिला है। अब वह बहुत अमीर हो गया है।”

राजा यह सुनकर स्तब्ध रह गया। अब सबकुछ उसकी समझ में आ गया था। उसकी आंखों से आंसू बहने लगे। वह हाथ जोड़कर आसमान की ओर देखने लगा और कहा, “हे ईश्वर, तू ही सच्चा दाता है। मैंने धन तो किशन को दिया, पर तूने वह धन गोपाल तक पहुंचा दिया।”

उस दिन से राजा का सारा घमंड टूट गया। अब वह भी गोपाल की तरह हर बात में भगवान को धन्यवाद देने लगा। उसे समझ आ गया था कि जो कुछ भी है, वह ईश्वर की कृपा से है। इंसान सिर्फ एक माध्यम है।

मित्रों, यह कहानी हमें सिखाती है कि घमंड नहीं करना चाहिए कि हम किसी को कुछ दे रहे हैं। असली दाता ऊपर बैठा है – ईश्वर। हमें उसकी कृपा का हमेशा आभार मानना चाहिए, क्योंकि वही है जो हर किसी की झोली भरता है।

जय माता दी। 🙏✨

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